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25 वेद स्तुति 38

 जब जीव माया से मोहित होकर अविद्या को अपना लेता है, उस समय उसके स्वरूपभूत आनंदआदि गुण ढक जाते हैं;वह गुण जन्य वृतियों, इंद्रियों और देहोमें फंस जाता है तथा उन्हीं को अपना आपा मानकर उनकी सेवा करने लगता है।अब उनकी जन्म-मृत्यु में अपनी जन्म-मृत्यु मान कर उनके चक्कर में पड़ जाता है।  परंतु प्रभु!जैसे सांप अपने केंचुल से कोई संबंध नहीं रखता,उसे छोड़ देता है-वैसे ही आप माया- अविद्या से कोई संबंध नहीं रखते, उसे सदा-सर्वदा छोड़े रहते हैं।इसी से आपके संपूर्ण ेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेऐश्वर्य सदा-सर्वदा आपके साथ रहते हैं। अणिमा आदि अष्ट सिद्धियों से युक्त परम ऐश्वर्या में आपकी स्थिति है।इसी से आपका ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य अपरिमित है, अनंत है; वह देश, काल और वस्तुओं की सीमा से आबद्ध नहीं है।28। हे प्रभु! आपकी यह माया आपकी दृष्टि के आंगन में आकर नाच रही हैं और काल, स्वभाव आदि के द्वारा सत्वगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी अनेकानेक भावो का प्रदर्शन कर रही है।साथ ही यह मेरे सिरपर सवार होकर मुझ आतुरको बलपूर्वक रौंद रही है।हे नृसिंह!मैं आपकी शरण में आया हूं,आ