भोगो की असारता

 लौकिक तथा पारलौकिक भोगों की असारता का निरूपण


ईश्वरके द्वारा नियंत्रित मायाके गुणोंने ही सूक्ष्म और स्थूल शरीर का निर्माण किया है। जीवको शरीर और शरीरको जीव समझ लेने के कारण ही स्थूल शरीरके जन्म मरण और सूक्ष्म शरीरके आवागमन का आत्मा पर आरोप किया जाता है। जीवको जन्म- मृत्यु लोक संसार इसी भ्रम अथवा अध्यासके कारण प्राप्त होता है। आत्माके स्वरूपका ज्ञान होने पर उसकी जड़ कट जाती है।

इस जन्म मृत्यु रूप संसारका कोई दूसरा कारण नहीं,केवल अज्ञान ही मूल कारण है। इसलिए अपने वास्तविक स्वरूपको, आत्माको जानने की इच्छा करनी चाहिए।अपना यह वास्तविक स्वरूप समस्त प्रकृति और प्राकृत जगतसे अतीत, द्वैतकी गंध से रहित एवं अपनेआपमें ही स्थित है। उसका और कोई आधार नहीं है। उसे जानकर धीरे-धीरे स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर आदि में जो सत्यत्व बुद्धि हो रही है,उसे क्रमशः मिटा देना चाहिए।

(यज्ञ में जब अरणी मंथन करके अग्नि उत्पन्न करते हैं तो उसमें नीचे ऊपर दो लकड़ियां रहती है और बीच में मंथन कास्ट रहता है वैसे ही) विद्या रूप अग्नि की उत्पत्ति के लिए आचार्य और शिष्य तो नीचे ऊपर की अरनिया है तथा उपदेश मंथन कास्ट है। इनसे जो ज्ञान अग्नि प्रज्वलित होती है वह विलक्षण सुख देने वाली है। इस यज्ञ में बुद्धिमान शिष्य सद्गुरु के द्वारा जो अत्यंत विशुद्ध ज्ञान प्राप्त करता है, वह गुणों से बनी हुई विषयों की माया को भस्म कर देता है। तत्पश्चात वे गुण भी भस्म हो जाते हैं,जिनसे कि यह संसार बना हुआ है। इस प्रकार सबके भस्म हो जाने पर जब आत्मा के अतिरिक्त और कोई वस्तु शेष नहीं रह जाती तब वह ज्ञानअग्नि भी ठीक वैसे ही अपने वास्तविक स्वरूप में शांत हो जाती है जैसे समिधा न रहने पर आग बुझ जाती है।

देवरहा बाबा परंम् रामभक्त थे, देवरहा बाबा के मुख में सदा राम नाम का वास था, वो भक्तो को राम मंत्र की दीक्षा दिया करते थे। वो सदा सरयू के किनारे रहा करते थे। उनका कहना था :-

"एक लकड़ी ह्रदय को मानो दूसर राम नाम पहिचानो

राम नाम नित उर पे मारो ब्रह्म दिखे संशय न जानो "।

भक्तो को कष्ट से मुक्ति के लिए कृष्ण मंत्र भी देते थे।


"ऊं कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने

प्रणत: क्लेश नाशाय, गोविन्दाय नमो-नम:"।

Comments

Popular posts from this blog

सिद्धियां

25 वेद स्तुति 38